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Sakat Chauth Varat :- जानिए किसके लिए किया जाता है सकट चौथ का व्रत तथा क्या है इस व्रत के पीछे का इतिहास ?

Sakat Chauth Varat :-

आप सभी को शंकर चौथ व्रत की भीत बहुत शुभकामनाये। आप सभी को हम बता दे की इस व्रत को भारत में बहुत विधि विधान के साथ किया जाता ही। इस व्रत की महिलाओ में बहुत ही ज्यादा महत्वता है। आपको बता दे की शंकर चौथ का व्रत हर साल जनवरी या फिर फरवरी के महीने में आता है। ये व्रत सभी माताए अपनी अपनी सन्तानो की सुख समृद्धि के लिए लिए रखती है। इस व्रत में भगवन गणेश जी की पूजा आराधन की जाती है। आपकी जानकारी के लिए हम आपको बता दे की इस व्रत को करने की विधि अलग अलग होती है।

सभी महिलाये अपने धार्मिक रीती रिवाजो को ध्यान में रख कर इस व्रत को पूर्ण करती है। इस व्रत को लेकर महिलाओ के आदर बहुत ही श्रद्धा होती है। हम आपको बता दे की इस व्रत में शांति भी बहुत जायदा होती है। इस दिन को तिलकुटा चौथ भी कहा जाता है। इस दिन भगवान् गणेश तथा चन्द्रमा जी की पूजा की जाती जाती। इस व्रत को माताएं चाँद के निकलने के बाद खोलती है। माताएं अपने बच्चो की लम्बी उम्र तथा जिन माताओं के बच्चे नहीं होते है वो संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को करती है। इस व्रत को माताएं निर्जला रखती है। पूरा दिन कुछ भी खाना पीना नहीं होता है।

आपको बता दे की कई लोगो का कहना होता है की ये व्रत बहुत ही जयादा कठिन होता है। इस व्रत को अगर आप पूरी श्रद्धा से रखते है तो आपको फल की प्राप्ति अवशय होगी। इस व्रत में पुरे विधि विधान तथा सच्चे मन से करना चाहिए। आपको मन माँगा फल गणेश जी अवश्य देंगे। आपकी जानकारी के लिए हम आपको बता दे की आज चन्द्रमा 9 बजकर 10 मिनट पर उदय होगा। इसी समय चन्द्रमा को अर्ध्य दिया जायेगा तथा व्रत को खोला जायेगा।

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Sakat Chauth Varat :- जानिए किसके लिए किया जाता है सकट चौथ का व्रत तथा क्या है इस व्रत के पीछे का इतिहास ?

Sakat Chauth Varat Katha :-

आईये आज हम आपको इस व्रत की कथा के बारे में बताते है। कहा जाता है की किसी नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार उसने बरतन बना कर जब उसमे आंवा लगाया तथा आंवा नहीं पका। वो बहुत ही ज्यादा परेशान हो गया उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। परेशान होकर वो राजा के [पास गया तथा राजा को उसने अपनी परेशानी बताई। इसके बाद राजा ने राजपंडित को बुलाया तथा इसका कारन पूछा। राजपंडित ने कहा की हर बार आंवा लगाने से पहले एक बच्चे की बलि देने से आंवा पक जायेगा। इस के बाद राजा ने इस का आदेश सभी को दे दिया।

हर बार किसी न किसी परिवार से एक बच्चे की बलि दी जाती थी। जिस परिवार के बच्चे की बलि की बारी आती वो अपने बच्चे को बलि के लिए भेज देते थे। ऐसा काफी समय तक चलता रहा। एक बार एक बुढ़िया के बेटे के बारी आयी। बुढ़िया का बेटा इकलौता था। बुढ़िया का वही मात्र सहारा था। बुढ़िया इस बात से बहुत परेशान थी की उसके बेटे की भी बलि दे दी जाएगी तथा उसका बेटा उससे दूर हो जाएगा। काफी सोच विचार के बाद बुढ़िया को एक उपाए सुझा।

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उसने अपने बेटे को सकट की सुपारी तथा दूब का बीड़ा दे कार कहा की “भगवान् का नाम लेकर आंवा में बैठ जाना भगवन तेरी रक्षा करंगे।” इसके बाद लड़के को कुम्हार ने आंवा में बिठा दिया। लड़का आंवा में बैठ कर भगवान् का नाम ले रहा तथा बुढ़िया घर पर बैठ कर सकट माता की पूजा कर रही थी। पहले तो आंवा पकने में कई दिन लग जाते थे

परन्तु इस बार आंवा एक ही रात में पक गया था। अगले दिन जब कुम्हार ने आकर देखा तो वो हैरान रह गया कि आंवा पक गया परन्तु जीवित आग में बैठा था उससे जरा सा भी नुक्सान नहीं हुआ था। सकट माता की इस महिमा से सभी बहुत खुश हए तथा तब से इस सकट चौथ के व्रत का आरम्भ हुआ है।

Sakat Chauth Varat :- जानिए किसके लिए किया जाता है सकट चौथ का व्रत तथा क्या है इस व्रत के पीछे का इतिहास ?

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